मूल नक्षत्र कौन-कौन से हैं इनके प्रभाव क्या हैं और उपाय कैसे होता है
मूल नक्षत्र कौन-कौन से हैं इनके प्रभाव क्या हैं और उपाय कैसे होता है
गंडमूल नक्षत्रों में पैदा हुए बच्चों के बारे में अलग-अलग विचार हैं। लोगों को पूरी जानकारी न होने के कारण वे छोड़े परेशान हो जाते हैं। गंडमूल नक्षत्रों में पैदा हुए बच्चों को जिस नक्षत्र मेंवे पैदा हुए होते हैं उसी नक्षत्र में उनकी पूजा की जाती है। कर्मकांड में पारंगत पंडित जी या निपुण ज्योतिषि इस काम को बहुत ही अच्छे ढंग से कर देते हैं। लोगों को इसके लिए ज्यादा परेशान होने की अावश्यकता नहीं है। भगृपंडित जी के पास 25 साल का अनुभव है अौर वह इस काम को अच्छे ढंग से करवा देते हैं। हम अापको मूल नक्षत्रों की पूरी जानकारी व पूजा का पूरा विधान यहा बता रहे हैं।
गंड मूल नक्षत्रों के लिए हर कोई जानना चाहता है। इन नक्षत्रों में पैदा हुए 2500 जातकों के जीवन को जांचा गया। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने यह कार्य किया था। वर्तमान में ऐसा इसलिए किया गया कि जाना जा सके कि इनके प्रभावों का क्या परिणाम है। जांच में सभी बातें सटीक व सी पाई गईं।
ज्येष्ठा आश्लेषा और रेवती,मूल मघा और अश्विनी यह नक्षत्र मूल नक्षत्र कहलाये जाते हैं,इन नक्षत्रों के अन्दर पैदा होने वाला जातक किसी न किसी प्रकार से पीडि़त होता है,ज्येष्ठा नक्षत्र में पैदा होने वाले के अगर इन नक्षत्र को शांत नहीं करवाया गया तो यह जातक को तुरंत सात महीने के अन्दर से दुष्प्रभाव देना चालू कर देता है। अगर किसी प्रकार से जातक खुद बड़ा है,तो माता पिता को अलग कर देता है,और खुद छोटा है,तो अपने से बड़े को दूर कर देता है या अन्त कर देता है। यही बात अश्लेशा नक्षत्र के बारे में कही जाती है कि अगर पहले पद मे जन्म हुआ है तो माता को त्याग देता है, दूसरे पाये में पिता को त्याग देता है, तीसरे पाये में अपने बड़े भाई या बहन को और चौथे पाये में अपने को ही सात दिन, सात महीने, सात वर्ष के अन्दर सभी प्रभावों को दिखा देता है।
अभुक्त मूल विचार
ज्येष्ठा नक्षत्र की अन्त की दो घड़ी तथा मूल नक्षत्र की आदि की दो घड़ी अभुक्त मूल कहलाती है,लेकिन यह बातें तब मानी जाती थीं,जब जातक के माता पिता पहले से ही धर्म कार्यों के अन्दर खुद को लगा कर रखते थे, मगर आज के जमाने में सभी भौतिक कारणों से और कुछ कारण दोनों नक्षत्रों की चारों ही घड़ी अभुक्त मूल कहलाने लगी हैं, इन दो नक्षत्रों में पैदा होने वाला जातक अपने मामा या पिता परिवार को बर्बाद कर देता है, अथवा खुद ही बर्बाद हो जाता है। कर्क लगन मे और कर्क राशि के अन्दर पैदा हुआ जातक अश्लेषा का जातक कहा जाता है,यह पिता के लिये भारी कहा जाता है, माता को परदेश वास देता है तथा धन के लिये माता को सभी सुख देता है और पिता को मरण देता है।
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starting Time Ending Time 2019
Date Nakshatra Time Date Nakshatra Time
3 January Jyeshtha From 11:03 5 January Mool Till 15:08
13 January Revati From 11:06 15 January Ashwini Till 13:56
21 January Ashlesha From 26:27 23 January Magha Till 20:47
30 January Jyeshtha From 16:40 1 February Mool Till 21:13
9 February Revati From 17:30 11 February Ashwini Till 21:13
18 February Ashlesha From 14:02 20 February Magha Till 08:00
26 February Jyeshtha From 23:04 28 February Mool Till 27:06
8 March Revati From 23:17 10 March Ashwini Till 26:57
17 March Ashlesha From 24:11 19 March Magha Till 19:39
26 March Jyeshtha From 07:15 28 March Mool Till 10:10
5 April Reavti From 05:36 7 April Ashwini Till 08:44
14 April Ashlesha From 07:40 16 April Magha Till 04:01
22 April Jyeshtha From 16:45 24 April Mool Till 18:35
2 May Revati From 13:02 04 May Ashwini Till 15:47
11 May Ashlesha From 13:13 13 May Magha Till 10:27
19 May Jyeshtha From 26:07 21 May Mool Till 27:31
29 May Revati From 21:18 31 May Ashwini Till 24:12
7 June Ashlesha From 18:56 9 June Magha Till 15:59
16 June Jyeshtha From 10:07 18 June Mool Till 11:50
26 June Revati From 05:38 28 June Ashwini Till 09:12
4 July Ashlesha From 26:30 6 July Magha Till 22:10
13 July Jyeshtha From 16:27 15 July Mool Till 18:52
23 July Revati From 13:14 25 July Ashwini Till 17:39
1 August Ashlesha From 12:12 3 August Magha Till 06:44
9 August Jyeshtha From 21:58 11 August Mool Till 24:45
19 August Revati From 19:48 21 August Ashwini Till 24:47
28 August Ashlesha From 22:55 30 August Magha Till 17:11
6 September Jyeshtha From 04:09 8 September Mool Till 06:29
15 September Revati From 25:45 18 September Ashwini Till 06:44
25 September Ashlesha From 08:53 27 September Magha Till 04:01
3 October Jyeshtha From 12:10 5 October Mool Till 13:19
13 October Revati From 07:53 15 October Ashwini Till 12:30
22 October Ashlesha From 16:39 24 October Magha Till 13:18
30 October Jyeshtha From 21:59 1 November Mool Till 21:52
9 November Revati From 14:56 11 November Ashwini Till 19:17
18 November Ashlesha From 22:21 20 November Magha Till 20:05
27 November Jyeshtha From 08:12 29 November Mool Till 07:34
6 December Revati From 22:57 9 December Ashwini Till 03:30
16 December Ashlesha From 04:01 17 December Magha Till 16:50
24 December Jyeshtha From 16:58 26 December Mool Till 16:50
मूल शांति के उपाय
ज्येष्ठा मूल या अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक के लिये नीचे लिखे मंत्रों का जाप 28000 जाप करवाने चाहिये,और 28वें दिन जब वही नक्षत्र आये तो मूल शान्ति का प्रयोजन करना चाहिये,जिस मन्त्र का जाप किया जावे उसका दशांश हवन करवाना चाहिये,और 28 ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिये,बिना मूल शांति करवाये मूल नक्षत्रों का प्रभाव दूर नही होता है।
मंत्र
ऊँ मातवे पुत्र पृथ्वी पुरीत्यमग्नि पूवेतो नावं मासवातां विश्वे र्देवेर ऋतुभि: सं विद्वान प्रजापति विश्वकर्मा विमन्चतु॥
मूल नक्षत्र का बड़ा मंत्र यह है,इसके बाद छोटा मंत्र इस प्रकार से है-
ऊँ एष ते निऋते। भागस्तं जुषुस्व।
ज्येष्ठा नक्षत्र का मंत्र इस प्रकार से है-
ऊँ सं इषहस्त-सनिषांगिर्भिर्क्वशीस सृष्टा सयुयऽइन्द्रोगणेन। सं सृष्टजित्सोमया शुद्धर्युध धन्वाप्रतिहिताभिरस्ता।
आश्लेषा मंत्र
ऊँ नमोऽर्स्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्य: सर्पेभ्यो नम:॥
मूल शांति की सामग्री
घड़ा एक,करवा एक,सरवा एक, पांच प्रकार के रंग, नारियल एक, 50 सुपारी, दूब, कुशा, बतासे, इन्द्र जौ, भोजपत्र, धूप, कपूर आटा चावल 2 गमछे, दो गज लाल कपड़े चंदोवे के लिये, मेवा 50 ग्राम, पेड़ा 50 ग्राम, बूरा 50 ग्राम, केला चार, माला दो, 27 पेड़ों की लकड़, 27 वृक्षों के अलग-अलग पत्ते, 27 कुंओं का पानी, गंगाजल, यमुना जल, हरनन्द का जल, समुद्र का जल अथवा समुद्र फेन, आम के पत्ते, पांच रत्न, पंच गव्य वन्दनवार, हल, 2 बांस की टोकरी, 101 छेद वाला कच्चा घड़ा, 1 घंटी 2 टोकरी छायादान के लिये, 1 मूल की मूर्ति स्वनिर्मित, बैल गाय 27 सेर सतनजा, 7 प्रकार की मिट्टी, हाथी के नीचे की घोड़े के नीचे की गाय के नीचे की तालाब की सांप की बांबी की नदी की और राजद्वार की वेदी के लिये पीली मिट्टी।
हवन सामग्री
चावल एक भाग,घी दो भाग बूरा दो भाग, जौ तीन भाग, तिल चार भाग,इसके अतिरिक्त मेवा अष्टगंध इन्द्र जौ,भोजपत्र मधु कपूर आदि। एक लाख मंत्र के एक सेर हवन सामग्री की जरूरत होती है,यदि कम मात्रा में जपना हो तो कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिये।
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